गूगल ने किया 'इडली' को सलाम: एक वैश्विक सम्मान
इंटरनेट की दुनिया के दिग्गज गूगल ने एक बार फिर अपने खास अंदाज में भारतीय संस्कृति और खान-पान को महत्व दिया है। अपने एनिमेटेड डूडल के ज़रिए गूगल ने इस बार दक्षिण भारतीय व्यंजन इडली को प्रमुखता से दर्शाया है। केले के पत्ते पर इडली बनने की पूरी प्रक्रिया को दिखाता यह डूडल न सिर्फ़ इसकी सादगी और गरमाहट को प्रदर्शित करता है, बल्कि भारतीय पाक-परंपरा को वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाता है।
गूगल के इस सम्मान ने इडली को केवल एक क्षेत्रीय नाश्ते से कहीं अधिक, एक सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में स्थापित किया है। यह डूडल गूगल की ‘फ़ूड एंड ड्रिंक सीरीज़’ का एक हिस्सा है, जो दुनिया भर के लोकप्रिय स्थानीय व्यंजनों का जश्न मनाता है। नरम, सफ़ेद इडलियों को भाप छोड़ते बर्तन में दिखाता यह चित्रण, दक्षिण भारतीय रसोई की उस ममत्व और गर्माहट को सामने लाता है, जो इसे हर घर का प्रिय व्यंजन बनाती है। चटनी, सांभर और फ़िल्टर कॉफ़ी के साथ परोसी जाने वाली इडली, आज सिर्फ़ एक भोजन नहीं, बल्कि भावना और दैनिक जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुकी है।
दक्षिण से उत्तर तक: इडली का स्वाद और पोषण
इडली, जिसे अक्सर सबसे हल्का और सुपाच्य नाश्ता माना जाता है, स्वाद के साथ-साथ पोषण के मामले में भी अव्वल है। यही कारण है कि इसे तमिलनाडु समेत सभी दक्षिण भारतीय राज्यों में सबसे अधिक पसंद किया जाता है, और अब यह अपनी लोकप्रियता के कारण उत्तर भारत तक में अपनी मज़बूत पैठ बना चुकी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी इडली को पौष्टिक व्यंजनों की श्रेणी में रखा है। इसका सबसे बड़ा कारण है इसकी बनाने की विधि—किण्वन (Fermentation)। चावल और उड़द दाल के मिश्रण को खमीर उठाने के लिए रात भर रखा जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान, चावल के स्टार्च टूट जाते हैं, जिससे कार्बोहाइड्रेट का पाचन अत्यंत सरल हो जाता है। भाप में पकाने के कारण इसमें तेल की मात्रा न के बराबर होती है, जो इसे स्वास्थ्य मानकों पर एक आदर्श भोजन बनाता है। पोषण और सुपाच्यता के इन गुणों के कारण ही इडली को खिचड़ी जैसा ही सम्मान प्राप्त है, जो बीमार से लेकर स्वस्थ व्यक्ति तक, हर किसी के लिए उत्तम आहार है।
इडली का अनसुलझा इतिहास: मत और प्रमाण
इडली जितनी सीधी और सरल दिखती है, इसका इतिहास उतना ही पेचीदा और बहस का विषय रहा है। आज जो इडली हम खाते हैं, उसकी उत्पत्ति को लेकर कई विभिन्न मत प्रचलित हैं।
1. कन्नड़ साहित्य में इडली का प्राचीनतम उल्लेख
920 ईस्वी में शिवकोटिआचार्य द्वारा रचित कन्नड़ ग्रंथ 'वड्डाराधने' में 'इडलीगे' नामक एक व्यंजन का वर्णन मिलता है। यह उल्लेख इडली के इतिहास का सबसे पुराना साहित्यिक प्रमाण माना जाता है।
1130 ईस्वी में पश्चिमी चालुक्य के राजा सोमेश्वर तृतीय ने अपने विश्वकोश 'मानसोल्लास' में भी इडली बनाने की विधि का उल्लेख किया। इस किताब में, जो राजमहल की रसोई पर केंद्रित थी, इडली को पहले स्थान पर रखा गया था। उस समय की इडली मुख्य रूप से उड़द दाल के गाढ़े घोल से बनती थी और भाप में पकाई जाती थी, हालांकि उसमें चावल का प्रयोग कम होता था।
2. वैदिक काल के पूर्वज व्यंजन
कुछ विशेषज्ञ इडली के मूल को और भी पीछे ले जाते हैं, वैदिक साहित्य के दौर में।
करव/कराव/करंभ: ऋग्वेद में सोमदेव को अर्पित किए जाने वाले खाद्य पदार्थ 'करव' का ज़िक्र है। यह जौ के सत्तू को दही में मिलाकर भाप में पकाया जाता था। करव को छोटी-छोटी कटोरियों में जमाकर बनाते थे, जो आधुनिक इडली के सांचों में भाप से पकाने की विधि से काफी मिलती-जुलती है।
अन्य भाप से बने व्यंजन, जैसे जौ और छाछ मिलाकर बना यवद्यूप, भी इडली के पूर्वज माने जा सकते हैं। हालांकि, इन्हें सीधे तौर पर इडली कहना मुश्किल है, पर यह भाप की पाक-विधि की प्राचीनता को ज़रूर स्थापित करता है।
3. इंडोनेशिया से आयात की कहानी: एक विवादास्पद दावा
सबसे विवादास्पद और दिलचस्प मत इसे इंडोनेशिया से आया हुआ व्यंजन मानता है।
जाने-माने शेफ़ रणवीर बरार ने भी एक टीवी शो में इडली के इंडोनेशियाई मूल का दावा किया था, जिसके अनुसार, इंडोनेशिया के व्यापारी, दार्शनिक और यात्री इसे भारतीय समुद्रतटीय राज्यों में लाए थे।
खाद्य वैज्ञानिक के.टी. आचार्य भी मानते हैं कि इडली का जो आधुनिक स्वरूप है—जिसमें किण्वन के लिए खमीर डाला जाता है—वह इंडोनेशिया से ही आया है।
एक लोकप्रिय कहानी के अनुसार, एक भारतीय राजा ने अपनी बहन की शादी इंडोनेशिया के राजपरिवार में की थी। साथ गए रसोइयों के जत्थे ने वहाँ इडली बनाई, जो इंडोनेशिया की धरती पर जाकर 'केडली' कहलाई। बाद में, यही केडली इंडोनेशियाई व्यापारियों के साथ वापस भारत आई और इसने आधुनिक इडली को जन्म दिया। इस आधुनिक विधि में दही या छाछ के बजाय खमीर या सोडा का इस्तेमाल होने लगा, जिससे इडली हल्की और फूली हुई बनती है।
इडली के क्षेत्रीय रूप: विविधता में एकता
इडली सिर्फ़ दक्षिण भारत तक ही सीमित नहीं रही। भारत के तटीय और पश्चिमी क्षेत्रों में भी इसके कई स्थानीय रूप (Local variations) विकसित हुए, जो इसकी लोकप्रियता और अनुकूलन क्षमता को दर्शाते हैं:
गोवा और कोंकणी क्षेत्र: यहाँ 'सन्ना हित्तली' का चलन है। यह भी चावल के आटे के घोल में खमीर उठाकर भाप से पकाया जाता है और इडली के ही समान होता है।
ओडिशा: यहाँ 'एंडुरी पिठा' नामक व्यंजन बनता है, जो चावल के आटे को छाछ के घोल में तैयार करके भाप में पकाया जाता है।
गुजरात: गुजराती साहित्य में 'वरनका समुच्चय' (1520 ईस्वी) में इडली को 'इदरी' कहा गया है। इसका स्थानीय रूप 'इडाडा' भी इडली जैसा ही होता है।
गूगल डूडल का महत्व: भारतीय पाक-परंपरा को वैश्विक मान्यता
गूगल का इडली को अपने डूडल में शामिल करना सिर्फ़ एक श्रद्धांजलि नहीं है। यह एक महत्वपूर्ण कदम है जो इस व्यंजन की असाधारण यात्रा को रेखांकित करता है—एक प्राचीन भारतीय या इंडोनेशियाई पकवान के पूर्वज से लेकर, पोषण और स्वास्थ्य के मामले में विश्व भर में मान्यता प्राप्त एक आधुनिक नाश्ते तक।
यह सम्मान दक्षिण भारतीय खाद्य परंपरा को वैश्विक मानचित्र पर मजबूती से स्थापित करता है। इडली की कहानी हमें बताती है कि कैसे एक साधारण सामग्री (चावल और दाल) और एक सरल तकनीक (किण्वन और भाप) का संयोजन एक ऐसा भोजन बना सकता है, जो सस्ता, सुलभ और पोषण से भरपूर हो।
आज, जब दुनिया स्वास्थ्यप्रद और टिकाऊ आहार विकल्पों की तलाश कर रही है, इडली एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करती है। गूगल के इस डूडल ने करोड़ों इंटरनेट उपयोगकर्ताओं को इस सादे, पर स्वादिष्ट और ऐतिहासिक व्यंजन के इतिहास और महत्व को जानने का अवसर दिया है। यह उत्सव केवल इडली का नहीं, बल्कि भारतीय पाक कला की समृद्ध विरासत का भी है।
इडली की यह यात्रा अभी भी जारी है, और भविष्य में, यह पौष्टिक और स्वादिष्ट नाश्ता दुनिया के और भी कोनों में अपनी जगह बनाएगा।

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